प्रोद्योगिकी विकास के इस युग में, जीवन के हर मोड़ पर मनुष्य कंप्यूटर और मशीनों के अधीन हो रहा है| घड़ी और मोबाइल फ़ोन से ले कर पर्सनल आईडैनटीफिकेशन चिप तक, सब कुछ बिजली की तरंगों से संचालित हो रहा है| सारे समाचार एवं तथ्य इन तरंगों में कैद हो रहे हैं|
इन सब के बीच, रेस्तरां का उद्योग क्यों पीछे रहे? चाहें वो एक आइसक्रीम पार्लर हो, फास्ट फ़ूड कोर्नर या एक बड़ा होटल – तकनीकीकरण से ये सभी नयी सीमायें तय कर रहे हैं| इस उद्योग में अब सिर्फ स्वादिष्ट भोजन परोसना ही पर्याप्त नहीं है| रेस्तरां, अब अपने अतिथियों की जीवन शैली और आर्थिक स्थिति के प्रदर्शक बन गए हैं|
रेस्तरां चलाना, ग्राहकों को समय से भोजन परोसना, रेस्तरां का ब्रांड वेल्यु बनाये रखना और उस पर मुनाफा कमाना, यह सब बहुत जटिल होता जा रहा है| कभी कभी एक साथ अनेकों ग्राहकों की लाइन लग जाती है, तो कभी इक्के दुक्के लोग ही दीखते हैं| कभी सामान कम पड़ जाता है, कभी रसोइया, कभी वेटर – तो कभी ऑर्डर नहीं होने की वजह से खाद्य पदार्थ सड़ने लगते हैं| इस उद्योग की इन्ही प्रकृतियों की वजह से तकनीकी यंत्रों का उपयोग कर वैज्ञानिक तरीके से इस कारोबार को सँभालना अनिवार्य हो गया है|
विशेषतः रेस्तरां के लिए बनायी गयी पॉइंट ऑफ़ सेल टेक्नोलोजी इलेक्ट्रोनिक उपकरणों और कम्प्यूटर प्रोग्राम्स का संकलन है, जिससे टेबल बुकिंग से लेकर बिल्लिंग तक के अधिकतर काम यंत्रों के ज़रिये फटाफट किये जा सकते हैं|
अब आप भोवें चढ़ा कर ये सोच रहे होंगें कि यह सब कैसे हो सकता है? आखिरकार रसोईघर में कम्प्यूटर का क्या काम? आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि एक पिज्जा, बर्गर या चाय कि दुकान पर भी आधुनिक यंत्रों के इस्तेमाल से ऑर्डर लिए जाते हैं, किचन में पकाए जाते हैं और परोसे जाते हैं| रेस्तरां के सोफ्टवेयर “मेनू कार्ड” का सविस्तार विवरण कम्प्यूटर पर रखते हैं| इसके साथ ही मेजों कि सजावट का चित्र भी बना होता है| अब वेटर घूम घूम कर ऑर्डर लेता है और “टच स्क्रीन मोनिटर” के ज़रिये फटाफट सभी ओर्डर्स को कम्प्यूटर में डाल देता है| फिर, रेस्तरां सोफ्टवेयर एक “किचन ऑर्डर टिकट” का प्रिंट-आउट निकालता है–जिसे देख कर रसोइया ऑर्डर की तईयारी करता है| यही सोफ्टवेयर मेज़ के हिसाब से बिल भी निकाल देता है, और वेटरों को दी हुई “टिप्स” का भी हिसाब रखता है|
रेस्तरां के प्रोग्राम सुचारू रूप से उद्योग को चलने और मेंनेज करने में भी मदद करते हैं| खाद्य पदार्थो कि सही दाम और सही मात्रा में खरीद, बिना खराब हुए उनका भण्डारण तथा ऑर्डर लेते वक्त उनकी किचन में उपलब्धि का ख़याल रखते हैं| इसके अतिरिक्त, किस प्रकार के व्यंजन पर अच्छा मुनाफा हो रहा है, किस पर मुनाफा बिलकुल भी नहीं है, किस व्यंजन को मेनू से हटा देना चाहिए, क्या मुफ्त में परोसना चाहिए, और किस वस्तु से अधिक व्यंजन बना कर ग्राहकों को खुश करना चाहिए, इन सभी बातों कि जानकारी देता है|
एक भोजनालय में खर्चे का वषय सिर्फ रसोईघर का सामान ही नहीं होता| एक भारी समस्या का विषय होता है काम करने वाले रसोइये, मैनेजर और वेटरों को सँभालना| किस वक्त कितने वेटर और कितने रसोइये होने चाहिए ताकि काम में बाधा ना आये, ग्राहक भी खुश रहें तथा आपका खर्चा भी कम हो, इसका जोड़ – घटाव करके कम्प्यूटर ही बता देता है| एक कुशल उद्योगपति के गुण, तीक्ष्ण बुद्धि और आंकड़ों को जांचने कि क्षमता होती है अच्छे कम्प्यूटर सोफ्टवेयर में|
किसी भी उद्योग के आखिरी और एहम पहलु होते हैं उनके चहेते ग्राहक| रेस्तरां ‘सर्विस इंडस्ट्री’ का हिस्सा हैं| भले ही वे अपने ग्राहकों कि भूक को शांत करके उनकी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं| तब भी, उनकी बढ़ती उम्मीदों पर खरा उतरना, और उन्हें उम्मीद से ज्यादा तृप्ति प्रदान करना अनिवार्य हो गया है| इस कोशिश में उनका साथ देता है पॉइंट ऑफ़ सेल रेस्तरां सोफ्टवेयर| आपको कभी ना कभी किसी ना किसी रेस्तरां से आपकी सालगिरह पर फूल और कार्ड तो मिला ही होगा! और यह फूलों भरा उपहार ना ही सिर्फ आपके ह्रदय को आमोद-प्रमोद से भर देता है, बल्कि आपके मन मैं उस रेस्तरां के लिए आत्मीयता की भावना जगा देता है|
अपने ग्राहकों के साथ रिश्ता बनाये रखने में जितने भी कदम ज़रूरी हैं, उनकी रीढ़ बनाता है ‘कस्टमर रिलेशनशिप मेनेजमेंट सोफ्टवेयर’| रेस्तरां के उपयोग के हिसाब से उसे रेस्तरां के अन्य प्रोग्राम्स के साथ सम्मिलित कर ग्राहकों को बनाये रखने की कोशिश में एहम भूमिका निभाता है|